SINDHU SABHYATA (PART-II)
सिन्धु सभ्यता CONTINUED from Part-I
धर्म
हड़प्पा में पकी मिट्टी की स्त्री मूर्तिकाएं भारी संख्या में मिली हैं । एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है । विद्वानों के मत में यह पृथ्वी देवी की प्रतिमा है और इसका निकट संबंध पौधों के जन्म और वृद्धि से रहा होगा । इसलिए मालूम होता है कि यहां के लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे और इसकी पूजा उसी तरह करते थे जिस तरह मिस्र के लोग नील नदी की देवी आइसिस् की । लेकिन प्राचीन मिस्र की तरह यहां का समाज भी मातृ प्रधान था कि नहीं यह कहना मुश्किल है । कुछ वैदिक सूक्तों में पृथ्वी माता की स्तुति है, किन्तु उनकों कोई प्रमुखता नहीं दी गई है । कालान्तर में ही हिन्दू धर्म में मातृदेवी को उच्च स्थान मिला है । ईसा की छठी सदी और उसके बाद से ही दुर्गा, अम्बा, चंडी आदि देवियों को आराध्य देवियों का स्थान मिला ।
पुरुष देवता
यहां मिले एक सील पर एक पुरुष देवता का चित्र मिला है । उसके सिर पर तीन सींग है और वह योगी की मुद्रा में पद्मासन में बैठा है । उसके चारों ओर एक हाथी, एक गैंडा और एक बाघ है तथा आसन के नीचे एक भैंसा और पांवों के पास दो हिरण हैं । इसकी छवि पौराणिक पशुपति महादेव से मिलती है । यहां पर लिंग पूजा का भी प्रचलन था और कई जगहों पर पत्थरों के बने लिंग तथा योनि पाए गए हैं । ऋग्वेद में लिंग पूजक अनार्य जातियों की चर्चा है । यहां के लोग वृक्ष पूजक भी थे । एक मृन्मुद्रा में पीपल की डालों के बीच में विराजमान देवता चित्रित हैं । इस वृक्, की पूजा आजतक जारी है । पशु-पूजा में भी इनका विश्वास था । अपने समकालीन मिस्री सभ्यता के विपरीत सिन्धु घाटी सभ्यता में किसी मंदिर का प्रमाण नहीं मिलता है ।
शिल्प और तकनीकी ज्ञान
यद्यपि इस युग के लोग पत्थरों के बहुत सारे औजार तथा उपकरण प्रयोग करते थे पर वे कांसे के निर्माण से भली भींति परिचित थे । तांबे तथा टिन मिलाकर धातुशिल्पी कांस्य का निर्माण करते थे । हंलांकि यहां दोनो में से कोई भी खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं था । सूती कपड़े भी बुने जाते थे । लोग नाव भी बनाते थे । मुद्रा निर्माण, मूर्तिका निर्माण के सात बरतन बनाना भी प्रमुख शिल्प था ।
लिपि
प्राचीन मेसोपोटामिया की तरह यहां के लोगों ने भी लेखन कला का आविष्कार किया था । हड़प्पाई लिपि का पहला नमूना 1853 ईस्वी में मिला था और 1923 में पूरी लिपि प्रकाश में आई परन्तु अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
माप-तौल
लिपि का ज्ञान हो जाने के कारण निजी सम्पत्ति का लेखा-जोखा आसान हो गया । व्यापार के लिए उन्हें माप तौल की आवश्यकता हुई और उन्होने इसका प्रयोग भी किया । बाट के तरह की कई वस्तुए मिली हैं । उनसे पता चलता है कि तौल में 16 या उसके आवर्तकों (जैसे – 16, 32, 48, 64, 160, 320, 640, 1280 इत्यादि) का उपयोग होता था । दिलचस्प बात ये है कि आधुनिक काल तक भारत में 1 रूपया 16 आने का होता था । 1 किलो में 4 पाव होते थे और हर पाव में 4 कनवां यानि एक किलो में कुल 16 कनवां ।
अवसान
यह सभ्यता मुख्यतः 2500 ई.पू. से 1800 ई. पू. तक रही । ऐसा आभास होता है कि यह सभ्य्ता अपने अंतिम चरण में ह्वासोन्मुख थी । इस समय मकानों में पुरानी ईंटों के प्रयोग कि जानकारी मिलती है । इसके विनाश के कारणों पर विद्वान एकमत नहीं हैं । सिंधु घाटी सभ्यता के अवसान के पीछे विभिन्न तर्क दिये जाते हैं जैसे:
1.बर्बर आक्रमण
2.जलवायु परिवर्तन एवं पारिस्थितिक असंतुलन
3.बाढ तथा भू-तात्विक परिवर्तन
4.महामारी
5.आर्थिक कारण
ऐसा लगता है कि इस सभ्यता के पतन का कोइ एक कारण नहीं था बल्कि विभिन्न कारणों के मेल से ऐसा हुआ ।
COURTESY Mr SHIV KISHOR